‘लखनवी अंदाज’ पाठ एक व्यंग्यात्मक कहानी है जिसमे लेखक ने उस सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है, जो दोहरी जिंदगी जीने का आदी हो चुका है। इसमें एक ऐसे नवाब साहब का वर्णन किया गया है जो ट्रेन के सैकण्ड क्लास में यात्रा करते हुए अपनी रईसी का प्रदर्शन करते हैं और खीरे में नमक-मिर्च लगाकर उसे खाते नहीं, बल्कि सूंघकर बाहर फेंक देते हैं।
कवि परिचय
यशपाल का जन्म सन 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काँगड़ा में ग्रहण करने के बाद लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए. किया। वहाँ इनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव से हुआ। स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ाव के कारण ये जेल भी गए। इनकी मृत्यु सन 1976 में हुई। ये यथार्थवादी शैली के विशिष्ट रचनाकार हैं। मेरी तेरी उसकी बात’ उपन्यास पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
लखनवी अंदाज़ Class 10 Hindi Kshitij
लेखक को पास ही कहीं जाना था। पैसेंजर ट्रेन चलने को तैयार खड़ी थी। लेखक ने यह सोचकर सेकंड क्लास का टिकट ले लिया कि उसमें भीड़ कम होती है। वह आराम से खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देखते हुए किसी नई कहानी के बारे में सोच सकेगा। लेखक दौड़कर एक डिब्बे में चढ़ा किंतु आशा के विपरीत, डिब्बा खाली नहीं था। उस डिब्बे में एक बर्थ पर एक सज्जन बैठे थे, जो सफेदपोश लखनवी नवाब थे। वे आराम से पालथी मारे बैठे थे। उनके सामने तौलिए पर दो ताजे-चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक का अचानक डिब्बे में चढ़ आना उन सज्जन को भाया नहीं। उसका असंतोष नवाब के चेहरे से साफ़ झलक रहा था। उन्होंने लेखक से बातचीत करने का उत्साह नहीं दिखाया तो लेखक ने भी आत्म-सम्मान में आँखें चुरा लीं।
नवाब साहब ने सेकंड क्लास का टिकट शायद इसलिए लिया था कि वे अकेले यात्रा कर सकेंगे और अब उन्हें यह बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था कि कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करते देखे। खीरे भी उन्होंने वक्त काटने के लिए खरीदे होंगे, लेकिन अब किसी के सामने खीरे कैसे खाएँ। नवाब साहब खिड़की से बाहर देख रहे थे और लेखक कनखियों से उनकी ओर देख रहे थे।
नवाब साहब ने लेखक का अभिवादन करते हुए पूछा-‘जनाब खीरे का शौक फरमायेंगे?’ लेखक ने शुक्रिया अदा करते हुए माना कर दिया। तब नवाब साहब ने तौलिया झाड़कर सामने बिछा लिया और दोनों खीरे धो-पोंछकर उस पर सजा लिये। फिर चाकू निकालकर खीरों के सिर काटे और उनका झाग निकाला। फिर बड़ी सावधानी से छीलकर काटे और जीरा मिला नमक-मिर्च बुरककर तौलिए पर सजाते हुए पुनः लेखक से खाने का आग्रह किया| लेखक ने आत्मसम्मान बनाये रखने के लिए पेट खराब होने के कारण इच्छा न होने का बहाना बनाया।
नवाब साहब द्वारा खीरे सँघकर फेंकना नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से खीरे की फाँकों को देखा। एक लम्बी साँस ली, खीरे की एक फाँक को उठाकर होठों तक ले जाकर सूंघा और स्वाद के आनन्द से पलकें मूंद लीं। उन्होंने मुँह में भर आये पानी को गले से नीचे उतार लिया। उसके बाद उन्होंने फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसी प्रकार एक-एक फाँक को सूंघकर, काल्पनिक रसास्वादन कर खिड़की से बाहर फेंकते गये।
खीरों की सारी फाँके बाहर फेंक कर नवाब साहब ने तौलिए से हाथ पोंछे और गर्व से लेखक की ओर देखा। वे मानो कह रहे हों यह है खानदानी रईसों का तरीका। नवाब साहब खीरे की तैयारी और उपयोग से थककर लेट गये। लेखक ने सोचा कि खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है। तभी नवाब साहब ने डकार ली और बोले- खीरा लजीज होता है, लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है। यह सुनकर लेखक ने सोचा कि जब खीरे के स्वाद और गंध की कल्पना से पेट भर जाने की डकार आ सकती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से नई कहानी भी बन सकती है।
शब्दार्थ
मुफ़स्सिल – केंद्र में स्थित नगर के इर्द-गिर्द के स्थान, सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति, अपदार्थ वस्तु – तुच्छ वस्तु, किफ़ायत – समझदारी से उपयोग करना, गवारा न होना – मन के अनुकूल न होना, कनखियों से देखना – तिरछी निगाह से देखना, आदाब अर्ज़ – अभिवादन का एक ढंग, लथेड़ लेना – लपेट लेना, करीने से – सलीके से, सुर्थी – लाली, बुरकना – छिड़कना, भाव-भंगिमा – मन के विचार को प्रकट करने वाली शारीरिक क्रिया, स्फुरन – फड़कना, हिलाना, रसास्वादन – किसी रस का स्वाद लेना, प्लावित होना – पानी भर जाना, पनियाती – रसीली, तलब – इच्छा, मेदा – आमाशय, सतृष्ण – इच्छासहित, तसलीम – सम्मान में, सिर खम करना – सिर झुकाना, तहज़ीब – शिष्टता, नफासत – स्वच्छता, नज़ाकत – कोमलता, नफीस – बढ़िया, एब्स्ट्रैक्ट – सूक्ष्म, जिसका भौतिक अस्तित्व न हो, अमूर्त, उदर – आमाशय, पेट, लज़ीज – स्वादिष्ट, सकील – आसानी से न पचने वाला, नामुराद – बेकार चीज़, ज्ञान-चक्षु – ज्ञान रूपी चक्षु, ज्ञान रूपी नेत्र।
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