Class 10 एक कहानी यह भी NCERT Summary students को संक्षिप्त तरीके से पाठ को समझने में काफी महत्वपूर्ण है| इनके माध्यम से वे पाठ के अहम हिस्सों को easily revise कर सकते हैं|

NCERT Summary for Chapter 10 Ek Kahani Yeh Bhi Hindi Kshitiz Class 10

इस पाठ को आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है| इसमें लेखिका ने अपने पारिवारिक वातावरण के उन पहलुओं को चित्रित किया है, जिनका प्रभाव उनके व्यक्तित्व निर्माण पर पड़ा है। उन्होंने बताया है कि उनके पिता इन्दौर छोड़कर अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के दो मंजिले मकान में कैसे रहने आ गये? उनका आर्थिक परेशानियों से भरा जीवन अजमेर में राजनीतिक पार्टियों के मध्य कैसे गुजरा और कॉलेज जीवन में लेखिका की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का उन पर क्या प्रभाव पड़ा, जिसके कारण वह साहित्यिक क्षेत्र में अपनी रुचि जगा सकीं|

कवि परिचय

लेखिका मन्नू भण्डारी का जन्म मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में 2 अप्रैल, सन् 1931 में हुआ था। राजस्थान के अजमेर से इंटरमीडिएट तक की शिक्षा करने के बाद बनारस विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूरी की। तत्पश्चात् कुछ समय कोलकाता में अध्यापन कार्य किया। बाद में हिन्दी साहित्य में एम. ए. करने के पश्चात् दिल्ली के मिरांडा हाउस में अध्यापन कार्य किया । सेवानिवृत्ति के बाद इन दिनों वे दिल्ली में रहकर अध्यापन कार्य कर रही हैं। इनकी रचनाओं में जहां सामाजिक जीवन के यथार्थ का चित्रण है वहीं स्त्री-मन से जुड़ी अनुभूतियों और मानव मन की पीड़ा पूर्ण संवेदना के साथ व्यक्त की गई है।

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शुरुआत में लेखिका के पिता इंदौर में रहते थे। वे संपन्न और प्रतिष्ठित होने के साथ कोमल और संवेदनशील भी थे। वे कांग्रेस के साथ-साथ समाज-सुधार के कामों से जुड़े रहते थे। शिक्षा और समाजसेवा की उनकी विशेष रुचि को आठ-दस विद्यार्थियों के सदा उनके घर रहकर पढ़ने से समझा जा सकता था। एक बार किसी करीबी व्यक्ति के धोखा दिए जाने पर वे आर्थिक मुसीबत में फँसकर अजमेर आ गए। अजमेर में उन्होंने अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश पूरा किया। उन्हें उससे यश ही मिला, परन्तु पैसा नहीं मिला। इस कारण उनकी सकारात्मकता घटती चली गई और वे सदा के लिए बेहद क्रोधी, शक्की, जिद्दी और अहंवादी हो गए।

मन्नू भण्डारी का जन्म मध्यप्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था परन्तु उसकी यादों का सिलसिला शुरू होता है अजमेर के बह्मपुरी मोहल्ले के एक दो मंजिला मकान से । उस मकान की ऊपरी मंजिल पर लेखिका के पिताजी या तो कुछ पढ़ते रहते या डिक्टेशन देते रहते। नीचे लेखिका, उसके भाई-बहन और माँ रहती थीं। पाँच भाई-बहनों में वे सबसे छोटी थीं| माँ अनपढ़ थीं, परन्तु बच्चों की इच्छा और पति की आज्ञा का पालन करने में जुटी रहती थीं।

लेखिका पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। वह अपने से दो साल बड़ी बहन सुशीला के साथ घर के आँगन में बचपन के सारे खेल, जैसे सतोलिया, लंगड़ी-टाँग, पकड़म-पकड़ाई आदि खेला करती। गुड़ियों के ब्याह भी रचाए। भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा भी खेला और पतंगें भी उड़ाई। उन दिनों घर की सीमा पूरे मोहल्ले तक होती थी। कुछ घर तो परिवार के हिस्से माने जाते थे, इस कारण उनमें जाने में मनाही नहीं थी। लेखिका बताती है कि आज महानगरों के फ्लैटों में रहने वाले लोगों का जीवन कितना संकुचित और असहाय हो गया है। बचपन में घर के पड़ोस की संस्कृति ने उसे इतना प्रभावित किया कि उसने अपनी आरंभिक कहानियाँ उन्हीं पर लिखीं| वर्तमान शहरी जीवन में पड़ोस की कमी उन्हें दुखी और चिंतित बनाती हैं।

लेखिका बताती है कि पिताजी के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएँ उनमें भी आ गईं। लेखिका बचपन में मरियल और दुबली-पतली थीं| पिता के द्वारा उससे बड़ी बहन सुशीला के गोरेपन और सुंदरता की प्रशंसा ने उन्हें हीन भावना से ग्रसित कर दिया| परिस्थितियों को किस्मत समझने वाली माँ को लेखिका कभी अपना आदर्श नहीं बना सकीं। लेखिका की बड़ी बहन की शादी लेखिका की छोटी उम्र में होने के कारण उसकी धुंधली-सी याद ही थी।

शीला के विवाह और भाइयों के पढ़ने के लिए बाहर जाने पर पिता ने उसे रसोई में समय खराब न कर देश-दुनिया का हाल जानने को प्रेरित किया। घर में राजनीतिक पार्टियों की बहसों को सुनकर उसमें देशभक्ति की भावना जगी। सन 1945 में सावित्री गर्ल्स कॉलेज के प्रथम वर्ष में हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका में न केवल हिंदी साहित्य के प्रति रुचि जगाई, बल्कि साहित्य के सच को जीवन में उतारने के लिए भी प्रेरित किया।

सन 1946-47 के दिनों में लेखिका ने घर से बाहर निकलकर देशसेवा में सक्रिय भूमिका निभाई। हड़तालों, जुलूसों व भाषणों में भाग लेने से छात्राएँ भी प्रभावित होकर कॉलेजों का बहिष्कार करने लगीं। प्रिंसिपल ने कॉलेज से निकाले जाने का नोटिस देने से पहले पिता को बुलाकर शिकायत की, तो वे क्रोधित होने के बदले लेखिका की नेतृत्वशक्ति देख गदगद हो गए। एक बार जब पिता ने अजमेर के व्यस्त चौराहे पर बेटी के साथियों के बीच अकेले धाराप्रवाह क्रांतिकारी भाषण की खबर मित्र से सनी तो पिता को लेखिका, घर की मर्यादा लाँघती लगी। दूसरे मित्र से उसी भाषण की प्रशंसा सुनकर वे गदगद भी हो उठे। बेटी में वे अपने देखे सपनों को पूरा होते देखने लगे।

लेखिका को भी इसका अहसास था कि उसमें पिता के अनेक गुण-अवगुण स्वाभाविक रूप से आ गए हैं। फिर भी पिता के स्वभाव की विशेषता-विशिष्ट बनने की चाह और सामाजिक छवि को न बिगड़ने देने के अंतर्विरोध को वह पूर्णतः न समझ पाई। देश की आजादी की खुशी से वह फूली नहीं समाई।

शब्दार्थ

अहंवादी – अहंकारी, आक्रांत – संकटग्रस्त, निषिद्ध – जिस पर रोक लगाई गई हो, भग्नावशेष – खंडहर, विस्फारित – फैलाकर, महाभोज – मन्नू भंडारी का चर्चित उपन्यास है। दा साहब उसके प्रमुख पात्र हैं, निहायत – बिलकुल, खामियाँ – कमियाँ, आसन्न अतीत – थोड़ा पहले ही बीता भूतकाल, फ़र्ज – कर्तव्य, यशलिप्सा – कीर्ति की चाह, दरियादिल – खुले दिल का, अचेतन – बेहोश, बेपढ़ी – अनपढ़, पहलुओं – पक्षों, हौसला – हिम्मत, ओहदा – पद, हाशिया – किनारा, यातना – कष्ट, गौरवगान – प्रशंसा करना, लेखकीय – लेखन से संबंधित, गुंथी – पिरोई, भन्ना-भन्ना – बार-बार क्रोधित होना, कुंठा – हीन बोध, प्राप्य – प्राप्त, दायरा – सीमा, हद, पाबंदी – रोक, वजूद – अस्तित्व, नुस्खे – तरीके, शगल – शौक, अहमियत – महत्व, बाकायदा – विधिवत, भागीदारी – भूमिका, बवंडर – तूफान, रगें – नसें, दकियानूसी – पिछड़ी, अंतर्विरोध – वंद्व, कोप – क्रोध, रोब – दबदबा, भभकना – अत्यधिक क्रोधित होना, धुआँधार – ज़ोरदार, धुरी – अक्ष, छवि – सुंदरता, पहचान, चिर – सदा, प्रबल – बलवती, लू उतारना – चुगली करना, थू-थू – शर्मसार होना, मत मारी जाना – अक्ल काम न करना, गुबार निकालना – मन की भड़ास निकालना, चपेट में आना – चंगुल में आना,आँख मृत्यु को प्राप्त होना, जड़ें जमाना – अपना प्रभाव जमाना, भट्ठी में झोंकना – अस्तित्व मिटा देना; अंतरंग – आत्मिक, आत्मीय संबंध, आह्वान – पुकार|