नन्हे-नन्हे नये दाँत उगने के बाद बच्चे की मनमोहक मुस्कान का चित्रण किया गया। कवि बच्चे की मुस्कान पर मुग्ध होकर कहता है कि वह मुस्कान मुर्दे में भी जान डाल देने वाली है। धूल से सने कोमल अंग वाले नवजात शिशु के शरीर की सुंदरता को देखकर ऐसा लगता है, जैसे कि तालाब को छोडकर कवि के झोपड़ी में ही कमल खिल गया है।कवि कहते हैं कि तुम्हारा कोमल स्पर्श पाकर बाँस और बबूल के काँटेदार पेड़ अपने कँटीलेपन पर लज्जा का अनुभव करने लगे और उनसे शेफालिका के सुगंधित, सुंदर और कोमल फूल झरने लगे हैं। नये दन्तुरित मुस्कान वाले बच्चे को लक्ष्य कर कवि कहता है कि तुम मुझे लगातार देखते रहने से थक गये होंगे। शायद तुम मुझे नहीं पहचान रहे हो।तुम्हारी पहचान तो माँ से ही रही उसी के योगदान के कारण जब-जब मैं तुम्हें देखता हूँ, मैं तुम्हें अपलक देखता ही रह जाता हूँ और तुम्हारी मुसकान मुझे भावविभोर कर देती है।
कवि नागार्जुन ने ‘फ़सल’ कविता के माध्यम से फ़सल क्या है और उसे पैदा करने में किनका-किनका योगदान रहता है, इसे अच्छी तरह बताया है| कवि कहते हैं कि फसल के उगने में भूमि, पानी, हवा, धूप और मानव-श्रम का योगदान रहता है। फसलों के उगने में किसी एक भूमि का नहीं, अपितु सभी भूमियों की भिन्न-भिन्न मिट्टियों का योगदान रहता है। इसी तरह एक नदी का नहीं, सारी नदियों का जल तथा हजारों किसानों के हाथों का स्पर्श अर्थात् श्रम का योगदान रहता है। फसल के लिए धूप और हवा की भी जरूरत होती है। इन सभी के गुणधर्म फसल उगती है तथा फलती-फूलती है।
यह दंतुरित मुस्कान का भावार्थ Class 10 Hindi Kshitij
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
शब्दार्थ: दंतुरित – बच्चों के छोटे-छोटे नए-नए दाँतों से युक्त, धूलि-धूसर – धूल-मिट्टी से सना, गात – शरीर, तन, जलजात – कमल का फल. परस – स्पर्श, पाषाण = पत्थर, शेफालिक – एक विशेष फूल, अनिमेष – बिना पलक झपकाए लगातार देखना।
कवि नन्हे से बच्चे को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तुम्हारे नन्हे-नन्हे निकलते दाँतों वाली मुस्कान इतनी मनमोहक है कि यह निर्जीव व्यक्ति में भी जान डाल सकती है। कवि इतने भावुक हो उठते हैं कि धूल-मिट्टी से सने उसके कोमल शरीर को देखकर उन्हें कमल की प्रतीति हो रही है। वे अचानक कह उठते हैं कि तालाब को छोड़कर कमल मानो मेरी झोंपड़ी में पुत्र के रूप में खिल रहा है और तुम्हारे कोमल स्पर्श को पाकर पत्थर भी पिघलकर मानो जल बन गया है। कवि कहते हैं की उनका मन बांस और बबूल की भांति नीरस और ठूँठ हो गया था परन्तु तुम्हारे कोमलता का स्पर्श मात्र पड़ते ही हृदय भी शेफालिका के फूलों की भांति झड़ने लगा। यानी कवि का मन बाँस और बबूल की भाँति कठोर और कँटीला हो गया था परन्तु बच्चे की मधुर मुसकान को देखकर उसका मन भी पिघल कर शेफालिका के फूलों की भाँति सहज और सुन्दर हो गया है। उनके हृदय में वातसल्य की धारा निकल पड़ी| कवि शिशु को कहते हैं कि तुमने आज से पूर्व मुझे कभी देखा ही नहीं, इसलिए शायद तुम मुझे पहचान नहीं पा रहे हो। लेकिन इस प्रकार एकटक देखते रहने से तुम थक गए होगे। कवि भी लगातार उसे देख रहे थे, किंतु अपने शिशुपुत्र को थकान से उबारने के लिए वे अपनी आँखें फेर लेने का प्रस्ताव रखते हैं। वे कहते हैं कि अगर मैं अपनी दृष्टि घुमा लूँगा तो तुम भी आसानी से अपनी नज़र घुमा लोगे और एकटक देखते रहने के श्रम से बच जाओगे।
काव्य सौंदर्य
- भाषा सरल खड़ी बोली है, किंतु पाषाण, जलजात, शेफालिका जैसे तत्सम शब्दों का भी कवि ने सुंदर प्रयोग किया है।
- ‘धूल-धूसरित’ में अनुप्रास अलंकार है।
- शिश के धल-धुसरित गात में ‘जलजात’ का आरोप किया गया है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
- ‘तुम्हारी यह दंतरित मुसकान, मृतक में भी डाल देगी जान’ में अतिशयोक्ति अलंकार है।
- ‘परस पाकर तुम्हारा ही प्राण, पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ इसमें उत्प्रेक्षा अलंकार है।
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
शब्दार्थ: धन्य – सम्मान के योग्य, चिर प्रवासी – लम्बे समय तक बाहर रहने वाला, इतर – अन्य, सम्पर्क – सम्बन्ध, अतिथि – मेहमान, मधुपर्क – दूध, दही, शहद, जल और मिश्री के मेल से बना हुआ पेय, पंचामृत, कनखीमार – तिरछी निगाह से देखकर आँखें हटा लेना, आँखें चार होना – प्यार होना, छविमान – बहुत सुन्दर।
शिशु अपनी दंतुरित मुसकान के साथ एकटक अपने पिता की ओर देख रहा है. किंत उसने अपने पिता को नहीं पहचाना। कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उसकी आँखों में जिज्ञासा है। कवि उसे संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम मुझे पहली बार देख रहे हो, इसलिए यदि मुझे पहचान भी न पाए तो वह स्वाभाविक ही है। मैं ही कभी तुम्हारे सामने न आया तो भला तुम मुझे कैसे पहचानोगे? कवि शिशु से कहता है कि लम्बे समय तक प्रवास में रहने के कारण तुम्हारे लिए मैं अतिथि ही हूं। अगर तुम्हारी माँ न होती तो आज तुम्हें मैं देख भी नहीं पाता। मैं घर पर नहीं रहा। तुमसे मेरा क्या संबंध है, यह तुम नहीं जानते किंतु तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य हैं, जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया और अब तक तुम्हारी देखभाल की। तुम्हारी मां ही तुम्हें अपनी उंगलियों से शहद आदि मधुपर्क कराती रहीं इसलिए तुम्हारा परिचय मां से ही रहा। तुम मुझे कनखियों से देखकर पहचानने का प्रयास कर रहे हो और जब मेरी नजरें तुमसे मिलती हैं तो तुम मुस्करा उठते हो । तुम्हारी मुस्कुराती हुई छवि बड़ी ही मनमोहक लगती है।
काव्य सौंदर्य
- सहज-सरल खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
- ‘कनखी मार देखना’ और ‘आँखें चार होना’ आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग हुआ है।
फसल का भावार्थ Class 10 Hindi Kshitij
एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म:
शब्दार्थ: कोटि – करोड़ों, गरिमा – गौरव।
कवि कहते हैं कि फसल उगाने के लिए बीज, मिट्टी, पानी, हवा, सूरज की किरणों आदि की आवश्यकता होती है। ये सब तो प्राकृतिक तत्व हैं। इनके अतिरिक्त किसानों का अथक परिश्रम भी आवश्यक है। ये जो खेतों में फसलें फल-फूल रही हैं, इनमें एक नहीं, दो नहीं, बल्कि सैकड़ों नदियों का जल इन फसलों को सींच रहा है जिसके कारण फसलें तैयार हो रही हैं। यानी ये कई नदियों का पानी भाप बनकर उड़ जाता है जो फिर बादल बनकर धरती पर बरसता है जिससे यह फसलें तैयार होती है। इन फसलों को तैयार करने में एक नहीं, दो नहीं, लाखों-लाखों और करोड़ों-करोड़ों लोगों के हाथों का स्पर्श मिला है यानी ये अनगनित किसान-मजदूरों ने इन्हें तैयार किया है। कवि मिट्टी के गुण-धर्म की बात करते हुए कहते हैं कि अलग-अलग मिट्टी की अलग-अलग विशेषता होती है। सभी मिट्टियाँ एक समान नहीं होती। उनके रूप, गुण, वैशिष्ट्य सब अलग-अलग होते हैं और इस प्रकार अलग-अलग गुण-धर्म वाली मिट्टी में अलग-अलग प्रकार की पैदावार होती है।
काव्य सौंदर्य
- प्रस्तुत काव्यांश की भाषा सरल खड़ी बोली है और इसमें स्पर्श, गरिमा और कोटि-कोटि जैसे तत्सम शब्दों का पुट है।
- लाख-लाख, कोटि-कोटि, हज़ार-हज़ार में पनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- ‘एक के नहीं, दो के नहीं’- इन पदों की बार-बार आवृत्ति से कविता में एक विशेष प्रभाव उत्पन्न हो गया है।
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
शब्दार्थ: महिमा – महत्ता, रूपांतर – परिवर्तित रूप, बदला हुआ रूप, सिमटा हुआ संकोच – सिमटकर मंद हो गया, थिरकन – नाच।
कवि फसल को लेकर प्रश्न करते हुए उत्तर देता है कि ये फसलें और कुछ नहीं हैं केवल नदियों के जल के प्रभाव का जादू हैं तथा मनुष्य के हाथों के स्पर्श अर्थात् उसके श्रम का सुखद परिणाम हैं। ये फसलें कहीं भूरी मिट्टी से उपजी हैं, तो कहीं काली मिट्टी से तो कहीं संदली मिट्टी से उपजी हैं। लाल, काली, भूरी, पीली, चिकनी या रेतीली मिट्टी में अलग-अलग प्रकार की फसल उगती है। ये फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। सूरज की किरणों ने ही इन फसलों को अपनी ऊष्मा देकर इस तरह का रूप प्रदान किया है। इन्हें बड़ा करने में हवा की भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। फसल प्राकृतिक तत्त्वों और मानव श्रम के सम्मिलित योगदान से तैयार होती है।
काव्य सौंदर्य
- प्रस्तुत काव्यांश की भाषा सरल खड़ी बोली है, जिसमें स्पर्श, महिमा, रूपांतर, संकोच आदि तत्सम शब्दों का समुचित प्रयोग हुआ है।
- ‘रूपांतर है सूरज की किरणों का’ कहकर कवि ने फसल को नया आयाम दिया है।
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