संगतकार Class 10 NCERT Summary पाठ को समझने में काफी helpful साबित होने वाला है जिसके through students अपने understanding को develop कर सकते हैं| इनके जरिये वे काफी हद तक पाठ से बनाये गए विभिन्न प्रश्नों को हल भी कर पायेंगें|

NCERT Summary for Chapter 6 Sangatkar Hindi Kshitiz Class 10

इस पाठ में कवि ने संगतकार की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट किया है| संगतकार मुख्य गायक की स्वर-साधना में अपनी सुंदर, धीमी और कमज़ोर आवाज़ से सहायक बनता है। जब मुख्य गायक किसी अन्तरे को गाते-गाते कुछ उलझ जाता है, जटिल तानों के उत्कर्ष में सरगम को लाँचकर ऊँचे स्वर में अटक जाता है, तब संगतकार उसके स्वर का साथ देकर मुख्य पंक्ति को गाता रहता है। स्वर को ऊँचा न उठाने की कोशिश में उसके स्वर में हिचकिचाहट भी आ जाती है। उस हिचकिचाहट को उसकी विफलता मानने की भूल नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे उसकी महानता समझना चाहिए।

कवि परिचय

मंगलेश डबराल का जन्म सन 1948 में टिहरी गढ़वाल, उत्तरांचल के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद ये पूर्वग्रह सहायक संपादक के रूप में जुड़े। इलाहबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की, बाद में सन 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद संभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादक रहने के बाद आजकल नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज़ में
वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था

शब्दार्थ: संगतकार – मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला कलाकार, गरज़ – ऊँची गंभीर आवाज़, अंतरा – स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण, जटिल – कठिन, तान – संगीत में स्वर का विस्तार, सरगम – संगीत के सात स्वर, अनहद – योग अथवा साधना की आनंददायक स्थिति, स्थायी – गीत का वह चरण, जो बार-बार गाया जाता है, नौसिखिया – जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो, शिष्य – चेला, सीखने वाला।

मुख्य या प्रधान गायक के गंभीर स्वर के साथ अपनी कमज़ोर किंतु मधुर आवाज़ से गाने वाले को संगतकार कहते हैं| वह मुख्य गायक का छोटा भाई, उसका शिष्य अथवा संगीत सीखने का इच्छुक उसका रिश्तेदार हो सकता है जो दूर से पैदल चलकर आया है। वह शुरू से ही उसके स्वर में अपना स्वर मिलाता आया है। गायक जब संगीत की जटिल तानों में भटक जाता है अथवा अपनी सरगम को लांघकर अनहद में भटक जाता है तब संगतकार ही स्थायी को गा-गाकर स्थिति को संभाल लेता है। ऐसा करते हुए लगता है कि मानो वह मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान समेट रहा हो। वह स्थायी को गाकर मुख्य गायक को एहसास दिलाने का प्रयास करता है कि जब उसने नया-नया सीखना शुरू किया था, तब वह भी ऐसा ही था।

काव्य सौंदर्य

  • काव्यांश खड़ी बोली में रचित है।
  • मुक्तक शैली में अतुकांत रचना है।

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

शब्दार्थ: तारसप्तक – सप्तक का अर्थ है सात स्वरों का समूह, लेकिन ध्वनि या आवाज़ की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। साधारण या सामान्य ध्वनि को ‘मध्य सप्तक’ कहते हैं। मध्य सप्तक से ऊपर की ध्वनि को ‘तार सप्तक’ कहते है यानी काफी ऊँची आवाज़। उत्साह अस्त होना – उत्साह खत्म होना, राख जैसा कुछ गिरता हुआ – बुझता हुआ स्वर, बेजान आवाज , ढाँढ़स बँधाता – तसल्ली देता, सांत्वना देता, विफलता – पराजय, हार।

कवि कहते हैं कि तारसप्तक (ऊंची आवाज) तक पहुंचते-पहुंचते जब मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, उसकी प्रेरणा साथ छोड़ती हुई सी प्रतीत होती है और उत्साह डगमगाने लगता है तब मुख्य गायक को सांत्वना देती हुई सी संगतकार की कोमल ध्वनि स्थायी को गाकर उसका साथ देती है। संगतकार उसे यह अनुभव कराता है कि इस अनुष्ठान में वह अकेला नहीं है। ऐसा करके संगतकार तब उसे मानो सांत्वना देता है कि निराश मत हो, हम सब तुम्हारे साथ हैं और पहले की भाँति पूरे दम-खम के साथ दोबारा फिर से गाया जा सकता है। इस समय उसके स्वर में हिचक होती है कि उसका स्वर मुख्य गायक के स्वर से ऊपर न पहुंच जाए । संगतकार द्वारा अपने स्वर को मुख्य गायक से ऊंचा न उठाने की कोशिश करना उसकी असफलता नहीं अपितु मानवता है। ऐसा करके वह मुख्य गायक के प्रति अपनी श्रद्धा व सम्मान प्रकट करता है।

काव्य सौंदर्य

  • मुक्त छंद और अतुकांत शब्दों में कवि ने रचना की है।
  • इसमें सरल-सहज खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
  • भावानुकूल प्रतीकों का उपयोग हुआ है।