पाठ के महत्वपूर्ण points को समझने के लिए Class 10 Hindi नेताजी का चश्मा NCERT Summary काफी उपयोगी साबित होने वाली हैं|

NCERT Summary for Chapter 7 Netaji Ka Chashma Hindi Kshitiz Class 10

‘नेताजी का चश्मा’ कहानी देशभक्त कैप्टन चश्मेवाले के बारे में हैं| यह कहानी देश के नागरिकों के मन में देशभक्ति की भावना को जगाने में सहायक है। यह कहानी चश्मेवाले के माध्यम से उन देशभक्तों के योगदान को रेखांकित करती है जो अप्रत्यक्ष रूप से अपने-अपने तरीके से देशप्रेम करते हैं। बड़ों के साथ-साथ हमारी भावी पीढ़ी का भी योगदान इसमें कम नहीं है।

कवि परिचय

स्वयं प्रकाश का जन्म मध्य प्रदेश के इन्दौर में सन् 1947 में हुआ था। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी की । इनकी नौकरी का अधिकांश हिस्सा राजस्थान में बीता। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद फिलहाल वे भोपाल में रहते हुए ‘वसुधा’ पत्रिका के सम्पादन से जुड़े हैं। साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए इन्हें ‘पहल’ सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनकी रचनाओं में वर्ग शोषण, जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के विरुद्ध विद्रोह का स्वर है।इनके 13 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

नेताजी का चश्मा Class 10 Hindi kshitij Summary


हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम से एक कस्बे से गुजरना पड़ता था। उस कस्बे में एक कारखाना,एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका भी थी। अब नगरपालिका थी, तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी। इसी नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी।

मूर्ति को देखकर लगता था कि समय और बजट की कमी के कारण किसी स्थानीय कलाकार से वह बनवाई गई थी। दो फुट ऊँची वह मूर्ति कस्बे के हाई स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल ने एक महीने में बनाकर लगवा दी थी। मर्ति सुंदर थी। केवल एक चीज़ की कसर थी। नेताजी की आँख पर चश्मा नहीं था। एक सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था।

हालदार ने जब पहली बार ऐसा चश्मा देखा, तो चेहरे पर कौतुक भरी मुस्कान फैल गई और कस्बे वालों की देशभक्ति की भावना उन्हें अच्छी लगी। चश्मे का बदलते रहना हालदार साहब जब दूसरी बार कस्बे से गुजरे, तो उन्होंने देखा कि मूर्ति पर चश्मे का फ्रेम बदल गया। तीसरी बार फिर उन्हें फ्रेम बदला चश्मा दिखाई दिया। हालदार ने सोचा कि यह अच्छा आइडिया है। मूर्ति पर कपड़े नहीं बदले जा सकते, किन्तु चश्मा बदल सकता है।

हालदार साहब ने एक बार अपनी जीप रुकवा ली और चौराहे पर बैठे पान वाले से पूछा कि मूर्ति पर चश्मा कौन बदलता है। उसने बताया कि ये फ्रेम कैप्टन चश्मेवाला बदलता है। हालदार साहब समझ गए कि चश्मेवाले को नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे को अच्छी नहीं लगती होगी इसलिए उसके अपने पास पड़े फ्रेमों में से एक को वह नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता होगा। जब किसी ग्राहक को वैसा ही फ्रेम चाहिए होता है जैसा कि मूर्ति पर लगा है, तो कैप्टन वह फ्रेम मूर्ति से उतारकर ग्राहक को देता है और मूर्ति पर नया फ्रेम लगा देता है।

हालदार साहब ने पानवाले से जानना चाहा कि कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है या आज़ाद हिंद फ़ौज का भूतपूर्व सिपाही? उसने बताया कि वह लँगड़ा क्या फ़ौज में जाएगा। यह तो उसका पागलपन है। हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। कैप्टन चश्मेवाले की दुकान नहीं थी, वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था।

दो साल के भीतर हालदार साहब ने नेताजी की मूर्ति पर कई तरह के चश्मे लगे देखे। एक बार जब हालदार साहब कस्बे से गुजरे, तो मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं था। उस दिन पानवाले की तथा चौराहे की सारी दुकानें बन्द थीं। इसलिए हालदार साहब को कारण का पता नहीं चला। अगली बार आकर उन्होंने पानवाले से पूछा कि मूर्ति पर चश्मा क्यों नहीं है? पानवाले ने उदास स्वर में कहा कि कैप्टन की मृत्यु हो गई। उन्हें बहुत दुख हुआ।

पंद्रह दिन बाद कस्बे से गुजरे, तो सोचा कि वहाँ नहीं रुकेंगे, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की ओर देखेंगे भी नहीं। लेकिन आदत से मजबूर चौराहा आते ही आँखें मूर्ति की ओर उठ गईं। वे जीप से उतरे और मूर्ति के सामने जाकर खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। यह देखकर हालदार साहब की आँखें भर आईं।

शब्दार्थ

कस्बा – छोटा शहर, लागत – किसी चीज़ की तैयारी में लगने वाला खर्च, ऊहापोह – क्या करें, क्या न करें की स्थिति, शासनावधि – शासन की अवधि, कमसिन – कम उम्र का, सराहनीय – प्रशंसा के योग्य, लक्षित करना – देखना, समझना, कौतुक – आश्चर्य, दुर्दमनीय – जिसको दबाना मुश्किल हो, खुशमिज़ाज – हँसमुख, गिराक – ग्राहक, आहत – घायल, दरकार – आवश्यक, ज़रूरी, द्रवित – अभिभूत होना, पारदर्शी – आर-पार दिखाई देने वाला, नतमस्तक – सम्मान में सिर झुकाना,अवाक् – चुप, मौन, प्रफुल्लता – खुशी, हृदयस्थली – विशेष महत्व रखने वाला स्थान; प्रतिष्ठित – स्थापित।